“बन गए हम पश्चिमी देखो….”
“बदल रहे है मौसम देखो,
बदल रहें है लोग,
बदल गया इन्सान देखो,
बन गए सब ढोंग ,
मैले हो गए रिश्ते देखो,
मैली हो गयी सोच,
सभ्यता के पदचिन्ह ना रहे,
बन गए हम पश्चिमी देखो,
हो गए हम पराये ,
माँ-बहने अब घर में बैठी,
बाहर घूम रहे हैवान देखो,
बंद कर ली आंखे क्यों,
कुछ सच तुम भी देखो,
झूठे लगते है सच्चे भी,
ये हो रहा है क्यों ?
क्यों टूट गया विश्वाश है,
अब तुम ही कुछ देखो,
इतना मत बदलो ऐ लोगो,
कुछ खुद को भी देखो,
उस ऊपरवाले को ना भूलो,
कुछ कल को भी देखो
झूठे रिश्तों के मत पीछे भागो,
कुछ सच्चे को भी देखो,
एक-दूजे को न कोसो अब,